दलित साहित्य विमर्श में नए प्रतिमान गढ़ते प्रदीप

  • अनिता भारती 

युवा आलोचक प्रदीप कुमार ठाकुर की सद्य: प्रकाशित पुस्तक 'साहित्य की इक्कीसवीं सदी और लोकतांत्रिक चेतना' पर सुपरिचित लेखिका अनिता भारती की टिप्पणी -  

संभावनाशील युवा आलोचक प्रदीप कुमार ठाकुर की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘साहित्य की इक्कीसवीं सदी और लोकतांत्रिक चेतना’ विभिन्न विमर्शों का संग्रह उस पुष्पगुच्छ के समान है, जिसमें तरह-तरह के पुष्प अपनी सुगंध और रंग लिए होते हैं। इस आलोचना पुस्तक की खासियत यही है कि आजकल के समय में चल रहे तमाम विमर्शों पर लेखक ने कुछ पल ठहरकर अपनी पैनी दृष्टि डाली है और सभी विमर्शों को अपने नजरिए के साथ-साथ समाज के नजरिए से भी भली-भांति जांचा परखा है। इस आलोचना पुस्तक में कुल मिलाकर पंद्रह आलेख हैं, जिसमें तीन लेख आज के समय के महत्त्वपूर्ण उपन्यासकार मिथिलेश्वर का किसानी जीवन की कारूणिक कथा पर ‘तेरा संगी कोई नहीं’,दूसरा लेख भगवानदास मोरवाल के उपन्यास ‘हलाला’ और तीसरी दलित साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर सुशीला टाकभौरे के उपन्यास ‘वह लड़की’ की समीक्षा पर आधारित है। इस पुस्तक में संकलित अधिकतर महत्त्वपूर्ण आलेख दलित स्त्री, दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, बाल साहित्य व थर्ड जेंडर पर आधारित हाशिए पर पटक दिए गए समाज और जानबूझकर अनदेखा किए गए समाज पर है।

अनीता भारती की आभासी दीवार से साभार 

अपनी भूमिका में प्रदीप कुमार ठाकुर कहते हैं-‘यह पुस्तक जैसा कि शीर्षक से ही विदित है कि लोकतंत्र को सर्वोच्च महत्त्व देता है। साथ ही उन लोकतांत्रिक आवाजों को जो साहित्य के माध्यम से प्रतिध्वनित हो रही है, उनकी शिनाख्त करता है। लोकतंत्र के प्रति इसी विश्वास और हिमायत से लबरेज युवा आलोचक प्रदीप कुमार ठाकुर दलित साहित्य विमर्श में अपने स्वयं ही नए प्रतिमान गढ़ते हैं। वह शोषित और वंचित समाज की वह आवाज़ उठाते हैं जो सदियों से उपेक्षित और प्रताड़ित है। वह अपनी आलोचना पद्धति में कुछ सूक्ष्म वक्तव्य भी देते हैं।खासकर दलित स्त्री के पक्ष पर वह अपनी खास तवज्जो रखते हैं। बाल साहित्य से लेकर थर्ड जेंडर साहित्य की आवश्यकता, उसकी जिजीविषा,पीड़ा और दुख को समग्रता में देखने का आग्रह करते हैं। युवा आलोचक प्रदीप कुमार साहित्य की अपने सूक्ष्म दृष्टि से समाज में चल रहे बौद्धिक विमर्श और उसकी उपज के संदर्भ, मायने और महत्त्व को अपने लेखों में बार-बार रेखांकित करते हैं।

इस पूरी पुस्तक के माध्यम से युवा आलोचक प्रदीप कुमार के अंदर वह तमाम संभावनाएं देखी जा सकती हैं जो आगे चलकर भविष्य में उन्हें साहित्य के आकाश में उचित स्थान प्राप्त करने में मददगार साबित होंगी।

(अनिता भारती देश की सुपरिचित कवयित्री, लेखिका एवं दलित व महिला अधिकारों के लिए लड़नेवाली एक जमीनी कार्यकर्त्ता हैं. वीरांगना झलकारी बाई सम्मान समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं. वे दलित लेखक संघ की सदस्य भी हैं.) 

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